Saturday, May 19, 2012

ग़ज़ल :०९

ग़ज़ल :०९

कितने साहिल किनारों की तलाश में है.
मेरी आवाजें भी दरारों की तलाश में है

इस कस्ती को खेने वाले का है इंतज़ार
तूफाँ में वह मझ्धारों की तलाश में है

किस्मत ने लिख दिया है जुदाई मुझको
कोई मेरे जैसे सितारों की तलाश में है

उनकी दुआयें भी मुस्कान नहीं देती
ऩजर कुछ खास नजारों की तलाश में है.

मासूमियत का लिवाज क्या ओढे अयान
मेरी तस्वीरें भी दीवारों की तलाश में है




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