ग़ज़ल :१६
पीने का पानी जहाँ ठहरा हुआ है
उतना ही कड़ा वहाँ पहरा हुआ है
खुले आकाश को देखे सालों हो गए
आज चारो तरफ ही कोहरा हुआ है
चिरागों की चेतना ये समा पी गयी
और अँधेरा आज फिर गहरा हुआ है
अनजाने हम इस गुलामी में फस गए
पर ये तिरंगा शान से फहरा हुआ है
ये प्रजा अपनी शिकायतें करे किस्से
राजा इनका पूर्णतयः बहरा हुआ है
बेबस लोगों ने अयान खुद कब्र खोदी
अब कफ़न ही उनके सर सेहरा हुआ है
पीने का पानी जहाँ ठहरा हुआ है
उतना ही कड़ा वहाँ पहरा हुआ है
खुले आकाश को देखे सालों हो गए
आज चारो तरफ ही कोहरा हुआ है
चिरागों की चेतना ये समा पी गयी
और अँधेरा आज फिर गहरा हुआ है
अनजाने हम इस गुलामी में फस गए
पर ये तिरंगा शान से फहरा हुआ है
ये प्रजा अपनी शिकायतें करे किस्से
राजा इनका पूर्णतयः बहरा हुआ है
बेबस लोगों ने अयान खुद कब्र खोदी
अब कफ़न ही उनके सर सेहरा हुआ है
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