ग़ज़ल .०१
सोचा था शाम संग सवेरा नहीं जाता.
देखा तो जुदा होकर ये डेरा नहीं जाता.
दर्द दफ़न हो गया जो जिगर जमीन में
चाहते हुए भी इसको उकेरा नहीं जाता .
दिल मेरा चाहे की वो राहों को छोड़ दे.
अफ़सोस है की उनका बसेरा नहीं जाता.
खुशबू दोस्ती और इश्क का है एक गुर
इनको बार बार बिखेरा नहीं नहीं जाता.
जो शराब के संग अयान शबाब बन गयी
जामों से उसको कभी उडेला नहीं जाता.
एक बार जो देख ले इस हसीं दोस्त को
उसके साथ नाम कभी भी मेरा नहीं जाता.
सोचा था शाम संग सवेरा नहीं जाता.
देखा तो जुदा होकर ये डेरा नहीं जाता.
दर्द दफ़न हो गया जो जिगर जमीन में
चाहते हुए भी इसको उकेरा नहीं जाता .
दिल मेरा चाहे की वो राहों को छोड़ दे.
अफ़सोस है की उनका बसेरा नहीं जाता.
खुशबू दोस्ती और इश्क का है एक गुर
इनको बार बार बिखेरा नहीं नहीं जाता.
जो शराब के संग अयान शबाब बन गयी
जामों से उसको कभी उडेला नहीं जाता.
एक बार जो देख ले इस हसीं दोस्त को
उसके साथ नाम कभी भी मेरा नहीं जाता.
No comments:
Post a Comment