ग़ज़ल .-०२ अनिल अयान
ग़म अपने भी पराये हो गए.
मुद्दतो मुस्कुराये हो गए.
जब भी सीमा लांघना चाहा
खौफनाक मेरे साये हो गए
अश्कों की तेज बारिशे रही
मेहमां बिन बुलाये हो गए .
उजड़े चमन के वासिंदे है हम
मुद्दतो घर बसाये हो गए
उजड़ी महफिले है अयान
कितने पल इन्हें सजाये हो गए .
ग़म अपने भी पराये हो गए.
मुद्दतो मुस्कुराये हो गए.
जब भी सीमा लांघना चाहा
खौफनाक मेरे साये हो गए
अश्कों की तेज बारिशे रही
मेहमां बिन बुलाये हो गए .
उजड़े चमन के वासिंदे है हम
मुद्दतो घर बसाये हो गए
उजड़ी महफिले है अयान
कितने पल इन्हें सजाये हो गए .
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