ग़ज़ल :०८
हम उनसे मिले अजनबी की तरह
मासूमियत लिए ज़िन्दगी की तरह
सिर्फ मजबूरियों का था तूफाँ वहाँ
ख्वाब भी सच लगे बंदगी की तरह
लफ्ज़ दिल से निकल गुमशुदा हो गए
हम तडपते ही रहे तिस्नगी की तरह
हमने उनको कहा अपनी मजबूरियाँ
बस बातें की उसने बानगी की तरह
दर्द का अयान ऐसा आलम रहा
तन्हाई भी रही दिल्लगी की तरह.
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