ग़ज़ल :११
बहुत दूर था अपना एक सहारा मेरा ....
क्या करता दरिया का किनारा मेरा .
.
फिर से था तूफ़ा का पैगाम यारो था .
बेबस था किस्मत का सितारा मेरा
लुटेरे मजे करते होगे अपने घर में
जो लूट ले गए सामान सारा मेरा
इसी तरह जी रहा हूँ हर पल यहाँ
सातवें आसमाँ में है अब पारा मेरा
चलो कही चले और कल की सुबह
अश्क हो गया है बहुत खारा मेरा
एक ने कहा था गलत उसको अयान
पानी तक नहीं माँगा यहाँ मारा मेरा
बहुत दूर था अपना एक सहारा मेरा ....
क्या करता दरिया का किनारा मेरा .
.
फिर से था तूफ़ा का पैगाम यारो था .
बेबस था किस्मत का सितारा मेरा
लुटेरे मजे करते होगे अपने घर में
जो लूट ले गए सामान सारा मेरा
इसी तरह जी रहा हूँ हर पल यहाँ
सातवें आसमाँ में है अब पारा मेरा
चलो कही चले और कल की सुबह
अश्क हो गया है बहुत खारा मेरा
एक ने कहा था गलत उसको अयान
पानी तक नहीं माँगा यहाँ मारा मेरा
No comments:
Post a Comment