Thursday, May 17, 2012

ग़ज़ल : ०६

ग़ज़ल : ०६
इस युग में कहाँ सभी इन्शान बन गए
किरदार गवाही के अब ईमान बन गए

हौसले सब जज्बाती जंग हारने लगे
जज़्बात इस दिल की बेईमान बन गए.

नफरतों से दिलदारी को काटना चाहा
उस दरमियाँ दोस्त मेरे हैवान बन गए.

बदलाव यहाँ रातो रात अयान हो गया
निर्गुणी सभी यहाँ गुणवान बन गए

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