Monday, April 25, 2016

धधकती सी मशालें हो गये.

निकल कर हवाले हो गये.
बस ठंड़ के दुशाले हो गये.

दर्द के आसरे ही हम रहे
दो जून के निवाले हो गये.

आग ऐसी लगी इस तन मे
धधकती सी मशालें हो गये.

काम कुछ हमने ऐसे किये.
आजन्म घर निकाले हो गये.

मंज़िलों तब मिली कदमों को.
तलवों में जो कई छाले हो गये.

दिल-हवेली शान से रोशन हुई
इसकी दीवारो मे जाले हो गये.

जिस जगह कभी था एक घर.
अब मकान आठमाले हो गये.

असहिष्णु जब से देश यह बना.
बदनाम मस्जिदें शिवाले हो गये.

ठगे हुये सभी गांव मिले.

किससे कितने घाव मिले.
कितने इनको भाव मिले.

नये नये लोग मिले जब.
रोज रोज मुझे ताव मिले.

राह नयी चलते - चलते
थके थके मेरे पांव मिले.

शहरो की राजनीति मे.
ठगे हुये सभी गांव मिले.

देश हुआ शतरंजी खेल.
संसद मे बस दांव मिले.

पेड़ो की सुनो कहानी
किस्सों मे ही छांव मिले.

मै तुमको तम से रिहाई दिला दूंगा..

तुम उजालों में खुशियां मनाते रहो.
मै तुमको तम से रिहाई दिला दूंगा..

गर मोहलत मिली इस जंग से मुझे
मै तुमको भी अपने से मिला दूंगा.

उजालों को विरासत बनाकर रखो
मै सफलता का अमिय पिला दूंगा.

तुम वफादारी से आगे बढ़ते रहो.
इस सफर का तुमको सिला दूंगा.

हार से सीख लेकर कोशिश करो.
हार की जड़ को मै भी हिला दूंगा.

तुम इस गुंचे चमन के वारिस बनों
मै गुलिस्तां मे एक गुल खिला दूंगा.

gazal

कब तक भर पायेगी खाई, निर्धन और धनवान की।
अब तो बोली लगती यारो, होठों की मुस्कान की।

वीरों का बलिदान भुलाकर, नेता बैठे शान से,
गिरवी है संसद में पूंजी, वीरों के बलिदान की।

समरसता का ज्ञान मिलेगा, हिन्दी के संसार में,
करें अगर चर्चा हिंदी में, मीरा और रसखान की।

नित कर्तव्य करो अपना, पर फल की इच्छा मत करना,
ज्ञान सतत देती है गीता, आयत भी कुरआन की।

खाये और अघाये ना जानें, पीडा खाली पेट की,
मानव धर्म भुला करके, वे बातें करते ज्ञान की।

लडके और लडकी का अंतर, पल में होता दूर है,
खूबी बहुत बडी होती है, पश्चिम के परिधान की।