अनिल अयान
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गजल
दिलासे देकर अब न सम्हालो मुझे.
यूँ मखमली तूफाँ में न पालो मुझे.
कब से किसी अनहोनी का डर था
यही रहने दो ना निकालो मुझे
अपनी नजरों से गिरा दिया तुमने
हो सके तो मुझसे ही चुरा लो मुझे
मेरे पास मायूसी है और खामोशी भी
इन्ही के संग दो पल बुला लो मुझे
थक सा गया हूँ बदलाव को देख
ऐ मौत गले लगाकर सुला लो मुझे
कोई भी रिश्ता यकीं बना नहीं पाया
इसके समुंदर में अब डुबा लो मुझे
बहुत रुसवा हो आया मै उस दर से
वक्त के संग एक बार खंगालो मुझे
मेरी आदमियत पर यदि कोई भ्रम हो
सम्मा संग हर रोज जला लो मुझको.
इस बीहड में न कोई आसरा नजर आया
मेरे मयार में न कोई भी खरा नजर आया
कहते है ये भी कुदरत का एक करिश्मा है
मुझे उसके सामने न कोई बडा नजर आया
अजीब से हालात थे मेरे शहर में अयान
इन गधों को समुन्दर भी हरा नजर आया
जो बहुत ज्यादा सेखी बघारता था सबसे
वो भीड में सबसे ज्यादा डरा नजर आया
मुझे अपने रिस्तों पर बहुत ही यकीं था
कल सुबह मै ही लावारिश पडा नजर आया
अतीत में झाँक कर जब खुद को मैने देखा
यादों का काफिला सामने खडा नजर आया
कमरे में रखे उस इकलौते बिस्तर में अयान
मेरा बिलखता हुआ अरमान जरा नजर आया.