Monday, October 26, 2015

बीफ ने शर्मसार कर दिया विधाता काे.

बदलकर रास्ते मैने पाया कि लेखन ने मुझे दिया हुनर.
मेरे मरने के बाद भी होगा दुनिया मे अयान का बसर.
दूसरो काे प्रकाशित करके ये दुआ मिली मुझको ऐसे .
जिसकी वजह से मै हो गया हूं अनजानों का रहगुजर.

ना गाय को अदब दिया ना ही माता को.
राजनीति मे घसीट लिये गऊमाता को.
स्वार्थ भी इस तरह हाबी हुआ तुम पर.
बीफ ने शर्मसार कर दिया विधाता काे.

zindagi khoti rahi.
vo bahut roti rahi.
apekshaye thi bahut.
nafrate'n boti rahi.
gussa ghrina liye.
palke'n bhigoti rahi.
ye ana doobti rahi.
sanse's soti rahi.
mai kuchh kar saka
vo door hoti rahi.

ज़द के लिये हर ज़र्रे पर मकां होता है.

सिफर से उंचाइयों तक जो भी पहुंचता है़.
उसे अपने बलबूते पर बहुत गुमां होता है.
जिसकी हिफ़ाजत करती हैं मंज़िलें खुद.
उसके जीने की खातिर पूरा जहां होता है.
सब्र तो जरा कर रास्ते के ऐ मुसाफिर.
ज़द के लिये हर ज़र्रे पर मकां होता है.
मंज़िलें उन्हें ही नसीब होती हैं यहां अयान.
जो इसकी अना पर हमेशा फ़ना होता है.
अता होता है मुकम्मल जहां उसी को
जो इसकी खातिर ही यहां बना होता है.

इसलिये हमेशा थोड़ा सबर करते हैं.

मेरी जुबां जब भी खामोश होती है.
तभी खयाल जेहन मे सफर करते है.
लफ्ज़ घूमते हैं गहराइयों मे मेरे.
नज़रे इनायत मे मेरे बसर करते है.
जल्दबाजी भी शैतान का काम है
इसलिये हमेशा थोड़ा सबर करते हैं.
लफ्ज़ जब इंकलाब ऐलान करते है.
तब इन्हें सब के पेश ए नज़र करते हैं.

मै अंधेरों में निवास करता रहा.

रहमत की तलाश करता रहा.
तुम पे ही विश्वास करता रहा.
दर्द को समझने वाले सनम.
क्यों खुद को उदास करता रहा.
अपनी आदत से मजबूर रहा.
सच कहने का प्रयास करता रहा.
रोक पायेगा कौन हौसलों को.
इन्हे ऊंचा अकाश करता रहा.
तुम्हे ताउम्र उजाले नसीब हो.
मै अंधेरों में निवास करता रहा.
ंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंं
बातें हुयी भी चाय से गाय तक.
यह देश यूं विकास करता रहा.
धर्म के ठेकेदार मौज उड़ाते रहे.
वो देश का विनाश करता रहा.
हम राम का कद बढ़ा नहीं सके.
रावण कद विकास करता रहा.
राजनीति का ऐसा चक्रव्यूह रहा.
नेता सबको हताश करता रहा.