Saturday, November 9, 2013

NAYI GAZAL

१.
अचानक कातिल इस तरफ दिखने लगे
और शायद सुपाडी ऊँचे दाम बिकने लगे
मसगूल है सब लुच्चे लफंगे गुफ्तगू मे
स्वार्थ की रोटी फिर ना कहीं सिकने लगे
कुत्ते बहुत सारे जमा होने लगे उनके घर
आदमियत की बोटियाँ भी न फिकने लगे
छेनी हथौडों की छुअन पाने के बाद भी
इन नेताओं को क्यों ये हाथ चिकने लगे
हर दाँव उसका की यहाँ पे जीता सदा
जीवन के बिसात में दाँव थे जितने लगे
२.
अजीब से लम्हे नजर आने लगे
खुशी के शैलाब नजर आने लगे
 मुस्किलातों मे रहा मेरा सफर
इस समुन्दर में लहर आने लगे
डरकर दिल समझ ना पायेगा
शायद जुबाँ में जहर आने लगे
सच का सामना नहीं होता यहाँ
काश सुबह का पहर आने लगे
बिन पैमाने के शेर दिखते यहाँ
यकीं है उसको बहर आने लगे
लोग कहते बहुत मजबूर है तू
जरा उनके घर दोपहर आने लगे
सच!बहुत ही कठिन है हर साँस
काश जीने का हुनर आने लगे
अनिल अयान श्रीवास्तव,सतना






Saturday, November 2, 2013

NAYI GAZAL


अदालतें वहीं रही पर फैसले बदल गये
ये सूरतें वही रही पर हौसले बदल गये
बेगुनाह काटता है एक उम्र कारावास में
और सीना ठोक अपराधी सब निकल गये
फुटपाथ में पडी जरा झोपडी को देखिये
और हंसते हुये खुशहाल सब महल गये
लोकतंत्र के इस तंत्रलोक का कमाल है
लाली पाप से संसद में दिल बहल गये
घाटी को अब छोड थाती को देखिये जरा
बारूद बंब आतंक से इंशान भी दहल गये
फिर से योजना बनी फिर से फाइलें गई
फिर आफिसों मे सारे कुकुरमुत्ते मचल गए
अनिल अयान श्रीवास्तव ,सतना
९४०६७८१०७०